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विजेता इतिहास का निर्माण करेंगे और हारे हुए रचेंगे कविता - मलेशियाई कवि जुरीनाह हसन की कविताएं / चयन एवं अनुवाद - यादवेन्द्र

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     73 वर्षीय जुरीनाह हसन (हनीरुज उपनाम) मलेशिया की सबसे प्रतिष्ठित कवि कथाकारों में शामिल हैं और देश की पहली स्त्री राष्ट्रकवि (नेशनल लॉरिएट) हैं। बचपन में उन्हें लड़की होने के नाते ज्यादा बोलने से और घर से बाहर निकलने से मना किया जाता था सो वह अपना अधिकांश समय रेडियो पर बजने वाले गीत सुनकर बिताया करती थीं। उन गीतों के चलते से उनका कविता की ओर झुकाव हुआ। अब तक उनकी लगभग दो दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं पर उन्हें लगता है कि बारह वर्ष से लिखना शुरु करने वाले को कहीं और ज्यादा लिखना चाहिए था। उनकी रचनाओं के अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पेनिश, रूसी इत्यादि भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हैं।

यहां प्रस्तुत कविताओं के अनुवाद मलय भाषा से उनके खुद किए अंग्रेजी अनुवादों पर आधारित हैं। zurinah1306.blogspot.com से साभार -यादवेंद्र 

 

 

   मैं खुद को कैसे देखती हूं   

 

अब मैं एक बावली अभिनेत्री हूं

बिल्कुल खाली मंच पर

पर्दा गिर गया है

और दर्शक सारे जा चुके हैं

लेकिन मैं हूं कि अभिनय किए जा रही हूं

संवाद की पसंदीदा लाइनें

 दोहराए जा रही हूं

"ईश्वर, आपकी मेहरबानी

आपका आभार हे ईश्वर

कि आपने मुझे हर चीज दे दी

सिवा एक चीज के

जिसकी मुझे सबसे ज्यादा ख्वाहिश थी।"

***

 

   इतिहास और कविता के बारे में  

 

इतिहास की किताबों में लिखा है

मर्दों ने बनाए तमाम राजघराने 

और लड़ते रहे एक के बाद दूसरी 

कभी न खत्म होने वाली जंग 

विजेताओं ने देशों की हुकूमतें संभाली

और हारने वालों ने की बगावतें

 

विजेता इतिहास का निर्माण करेंगे 

और हारे हुए रचेंगे कविता 

***


   नन्ही चींटियां    


मैं थोड़ा सा शहद गिराती हूं जमीन पर

कुछ चींटियां आ जाती हैं

कुछ मिनट बीते

तो और चींटियां इकट्ठा हो गईं

देखते देखते चींटियों का तांता लग गया

लाइन लगा कर चली आ रही हैं।

 

मैं उन्हें निहारते हुए सोचती हूं

कि कैसे बगैर पुकारेकोई आवाज़ निकाले

वे अपने दोस्तों को इकट्ठा कर लेती हैं

कि जल्दी जल्दी आओ 

देखो यहां खाने को कुछ है

मैंने किताबों में पढ़ा था

कि जंतु आपस में बोलते बतियाते हैं

 

यह सब तो मैंने अपनी आंखों देख लिया 

और उनकी दक्षता पर मोहित हो गई

एक दिन मैंने एक चींटी को कहते सुना: यह मत भूलना कि हम 

इंसान नहीं 

महज़ जानवर हैं

जब हम एक दूसरे के 

अगल बगल से गुजरते हैं

आपस में बोल बतिया लेते हैं

पर हम किसी भी हाल में 

झूठ नहीं बोल सकते

इंसान की तरह हम चतुर सुजान नहीं है

खुदा की बनाई तमाम कायनात में

इंसान ही इकलौता ऐसा जीव है

जिसके पास झूठे बोल बोलने 

और उन्हें पूरी धरती पर फैला डालने की

काबिलियत है।

***

     

   यादवेंद्र  

घने अंधकार में खुलती खिड़की, अनुवाद : तंग गलियों से भी दिखता है आकाश (विश्व साहित्य से स्त्री कथाकारों की चुनी हुई कहानियाँ  2018), स्याही की गमक (विश्व साहित्य से स्त्री कथाकारों की चुनी हुई कहानियाँ - 2019) संपादन : कथादेश (विश्व साहित्य की प्रमुख लेखिकाओं की रचनाओं पर केंद्रित अंक - मार्च 2017)

पूर्व मुख्य वैज्ञानिक
सीएसआईआर – सीबीआरआई , रूड़की

पता : 72, आदित्य नगर कॉलोनी,

जगदेव पथ, बेली रोड,
पटना – 800014

 

 

 

 


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