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इरोम शर्मिला/ के.सच्चिदानंदन : अनुवाद - यादवेन्द्र

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करीब दस वर्ष तक मणिपुर में सुरक्षा बलों को असीमित अधिकार देने वाले आर्म्ड फोर्सेज़ (स्पेशल पावर्स) ऐक्ट को हटाये जाने की माँग करते हुए भूख हड़ताल करती आ रही इरोम शर्मीला ने आज अपना अनशन समाप्त कर दिया। उनपर किसी आतंकी कार्य का नहीं बल्कि अपना जीवन समाप्त कर लेने की कोशिश करने का आरोप है और आज भी जज ने उनसे इस अपराध को स्वीकार कर माफ़ी माँगने को कहा पर शर्मीला ने सख्ती से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि वे आंदोलन का रास्ता नहीं छोड़ेंगी पर आंदोलन के वैकल्पिक रूपों - विधान सभा के चुनाव लड़ना उनमें से एक रास्ता है - के साथ आगे बढ़ेंगी। बार उनके प्रेम और विवाह की बातों को उछालने वालों को जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि प्रेम उनका नितांत निजी और कुदरती मामला है। 
इरोम शर्मीला स्वयम एक सशक्त कवि हैं - उनको केंद्र में रख कर मलयालम के मूर्धन्य कवि के सच्चिदानंदन की लिखी इस महत्वपूर्ण कविता के अंश यहाँ प्रस्तुत हैं :
- यादवेन्द्र

तुम 
     - के सच्चिदानंदन   

मेरा शरीर 
मेरा झंडा है शोक में आधा झुका हुआ 
मेरा पानी आता है 
आगामी कल की नदियों से 
और मेरी रोटी 
पकती है हवा की रसोई में। 
मेरे दिमाग के अंदर घुसा हुआ है 
एक बुलेट
किसी अनदेखे तोते जैसा हरा है उसका रंग। 
मेरा नाम 
मेरी प्राचीन भाषा का अंतिम अक्षर है 
हर पहेली के सही जवाब उसमें हैं 
हर मुहावरे का नैतिक पाठ उसमें समाहित है 
हर जादुई मंत्र के देवता का उसमें वास है
हर भविष्यवाणी का अपशकुन उसमें है। 
***
मैं न भी रही तो क्या 
काबिज़ रहेगी मेरी उम्मीद:
पर्वतों से निकल कर बिखरते शब्दों को 
नली ठूँस कर खिलाने की दरकार नहीं होगी 
न ही जंगलों से निकल कर फैलती कविता को 
कुचल सकेगा कोई बूट 
फ़ौलाद से निर्मित वर्णमाला के सीने में 
क्या मजाल कि घोंप दे कोई संगीन ...
बैंगनी रंग का उड़हुल :
मेरा मणिपुर दिल 
मौसम कोई भी हो हरदम खिला रहता है।  
*** 
(kractivist.wordpress.com/2012/11/11/manipurs-irom-sharmila-our-irom-sharmila-sundayreading-poems/पर उपलब्ध कविता के सम्पादित अंश)
चित्र : मुसरत रियाज़ी / http://pashupatisasana.blogspot.in/2011/11/irom-sharmilas-eleven-year-fast.htmlसे साभार 

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