रेखा चमोली उन नई कवियों में हैं, जिन्हें हम इस यक़ीन के साथ पढ़ते हैं कि वे हमारे सामाजिक जीवन के संघर्षों और विद्रूपों को हमारे आगे कुछ और खोलेंगे। रेखा चमोली पर हमारा यक़ीन हर बार सही साबित होता है। 'चाकू को फूल में और फूलों को चाकू में बदल देने वाले'जादूगर के इस उत्थान-काल में हम उनकी नई कविताएं पाठकों को ठीक उसी यक़ीन के साथ सौंप रहे हैं। इन कविताओं के लिए अनुनाद कवि को शुक्रिया कहता है।
जादूगर खेल दिखाता है
जादूगर खेल दिखाता है
अपने कोट की जेब से निकालता है एक सूर्ख फूल
और बदल देता है उसे पलक झपकते ही नुकीले चाकू में
तुम्हें लगता है जादूगर चाकू को फिर से फूल में बदल देगा
पर वो ऐसा नहीं करता
वो अब तक न जाने कितने फूलों को चाकुओं में बदल चुका है।
जादूगर पूछता है कौन सी मिठाई खाओगे ?
वो एक खाली डिब्बा तुम्हारी ओर बढाता है
तुमसे तुम्हारी जेब का आखिरी बचा सिक्का उसमें डालने को कहता है
और हवा में कहीं मिठाई की तस्वीर बनाता है
तुम्हारी जीभ के लार से भरने तक के समय के बीच
मिठाई कहीं गुम हो जाती है
तुम लार को भीतर घूटते हो
कुछ पूछने को गला खंखारते हो
तब तक नया खेल शुरू हो जाता है।
जादूगर कहता है
मान लो तुम्हारा पड़ोसी तुम्हें मारने को आए तो तुम क्या करोगे ?
तुम कहते हो , तुम्हारा पड़ोसी एक दयालू आदमी है
जादूगर कहता है ,मान लो
तुम कहते हो , आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ
जादूगर कहता है, मान लो मानने में क्या जाता है?
तुम पल भर के लिए मानने को राजी होते हो
तुम्हारे मानते ही वह तुम्हारे हाथ में हथियार देकर कहता है
इससे पहले कि वो तुम्हें मारे ,तुम उसे मार डालो
जादूगर तुम्हारे डर से अपने लिए हथियार खरीदता है।
जादूगर कहता है
वो दिन रात तुम्हारी चिन्ता में जलता है
वो पल पल तुम्हारे भले की सोचता है
वो तुम्हें तथाकथित उन कलाओं के बारे में बताता है
जिनसे कई सौ साल पहले तुम्हारे पूर्वजों ने राज किया था
वो उन कलाओं को फिर से तुम्हें सिखा देने का दावा करता है
वो बडे-बडे पंडाल लगाता है
लाउडस्पीकर पर गला फाड फाडकर चिल्लाता है
भरी दोपहरी तुम्हें तुम्हारे घरों से बुलाकर
स्वर्ग और नरक का भेद बताता है
तुम्हारे बच्चों के सिरों के ऊपर पैर रखकर भाषण देता है
तुम अपने बच्चों के कंकालों की चरमराहट सुनते ही
उन्हें सहारा देने को दौड लगाते हो
गुस्से और नफरत से जादूगर की ओर देखते हो
तुम जादुगर से पूछना चाहते हो उसने ऐसा क्यों किया
इस बीच जादूगर अदृश्य हो जाता है
उसे दूसरी जगह अपना खेल शुरू करने की देर हो रही होती है।
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अच्छे बच्चे
अच्छे बच्चे सवाल नहीं पूछते
वे अपनी चीजें व्यवस्थित रखते हैं
अपने कपड़े और बाल खराब नहीं होने देते
कोई इनसे मारपीट कर दे तो चुपचाप रोते हैं
किसी बड़े के डांटने पर नाराज नहीं होते
पुकारे जाने पर तुरंत जबाब देते हैं
बुलाने पर अपना खेल छोड़ दौड़ कर आते हैं
हमें जरूरत होती है बहुत सारे अच्छे बच्चों की
इसीलिए हमने बहुत सारे स्कूल खोल लिए हैं।
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प्रेम में डूबा मन सबसे अधिक दयालू होता है
प्रेम में डूबा आदमी जोर से नहीं बोलता किसी से
झल्लाता नहीं बात बात पर
चहकता महकता है
बेवजह मुस्काता है
उसका पौरूष किसी को डराता नहीं
चट्टानों पर भी राह बनाता है
बंजर पर भी अन्न उगाता है
उसका स्पर्श फूलों सा कोमल होता है
उसकी आवाज बच्चों की आवाज सी मीठी होती है
प्रेम में डूबी स्त्री
पृथ्वी से भी अधिक धैर्यशाली होती है
उसके हौंसलों के आगे सागर भी हार मानता है
उसके चेहरे का नमक समय के साथ फीका नहीं पडता
उसके शरीर की फुर्ती कई बार बाघिन को भी मात दे देती है
वो अपने रोजमर्रा के जीवन से उपजे दुखों को
ज्यादा मुंह नहीं लगाती ,तुरंत फटकार देती है
अपनी छोटी से छोटी खुशी को
अपने भीतर रोप देती है
प्रेम फिर फिर उपजता है उसके भीतर
प्रेम में डूबे स्त्री -पुरुष
कभी निराश नहीं होते
कितनी भी अंधेरी हो रात
सुबह की उम्मीद को मिटने नहीं देते
इन्हें साथ साथ चलने पर भरोसा होता है
ये पतझड़ में भी सौन्दर्य देखते हैं
इन्हें घंटो बांधे रखती है नदी की आवाज
ये बेमतलब भीगना चाहते हैं बारिश में
बच्चों की तरह सवाल पूछते हैं
अभावों में भी ढूंढ ही लेते हैं कोई न कोई साधन
ये जीवन को काटने पर नहीं
साथ साथ जीने में विश्वास रखते हैं
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि
अगर कोई बचा पाया ये धरती
तो वे प्रेम में डूबे स्त्री -पुरूष ही होंगे।
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विद्या माता की कसम
सुनो मेरी जान
जब तुम ब्राउन गोगल्स लगाए
फर्राटे से स्कूटी पर निकलती हो
इधर-उधर खडे लोगों के दिलों से आह निकलती है
नयी-नयी गाड़ी चलाना सीख
हाईवे पर चक्कर लगाती हो
ओ मेरी मां ,कह कोई आदमी आवाज लगाता है
इन आहों और आवाजों को सुन
तुम्हारी आंखें और कान और सजग हो जाते हैं
दुकानदार के गलत हिसाब से मिले ज्यादा रूपए
वापस लौटाती हो
वो मैडम जी कह खींसे निपोरता है
तुम दुबारा उसकी दुकान पर महीनों नहीं जाती हो
तुम्हें परवाह नहीं होती कैसी दिख रही हो तुम
बिंदास चलती हो मस्त हथिनी की तरह
रास्ते के कुत्तों की भौं भौं पर मन ही मन मुस्काती हो
ये जानकर भी कि कई जोड़ी आंखें तनी हैं तुम पर
बीच रास्ते किसी बात पर जोर का ठहाका लगाती हो
फूल सी नाजुक हो
पर लडने-भिड़ने में महारत है तुम्हें
कहीं भी कुछ भी गलत होता देख
डरते तो हम किसी के बाप से भी नहीं कह अड़ जाती हो
कभी घंटों-दिनों रहती हो चुप
अखबार फेंक देती हो तोड़-मरोड़
टी वी का स्विच गुस्से से करती हो ऑफ
पूछने पर कुछ नहीं कह टालती हो
जाने किन-किन बातों से बेचैन रहती हो
फिर खुद ही इकठ्ठी करती हो अपनी उम्मीदें
नयी कोई योजना बनाती हो
फैलाती हो उजियारे रंग अपने आसपास
अपनी निराशा को पछोड-पछोड कर धो डालती हो
विद्या मॉं की कसम मेरी जान
तुम मेरा दिल लूट ले जाती हो।
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डरे हुए लोग
डरे हुए लोग किसी एक तरफ नहीं होते
वे थोड़ा थोड़ा सबकी तरफ होते हैं
बात तो आप ठीक कह रहे हैं पर क्या करें ?
दुनियादारी भी देखनी होती है कहकर
हर एक को साथ लिए होते हैं
ये वर्तमान में जीने के बजाए अतीत का गुणगान करते हैं
भविष्य में मिलने वाले लाभों पर चर्चा करते हैं
इन्हें मनुष्यों से ज्यादा भरोसा देवताओं पर होता है
ये नाक की सीध में आते जाते हैं
और किसी भी पचड़े में नहीं पड़ते
इनका पेट और बिस्तर सुरक्षित रहे बस
इनका कोई मत या विचार नहीं होता
इनका मुख और कान सिर्फ फायदा बोलता और सुनता है
ये उठते -सोते समय दिशा का और गंदगी करते समय
अपनी चारदीवारी का ध्यान रखते हैं
ये कभी कभी इतना डर जाते हैं कि इनके पेड़ों पर लगे फल
पेड़ों पर ही सड़ जाते हैं पर किसी के साथ बंटते नहीं
ये पडोसी के बेटे को गली में छिपकर सिगरेट पीता देख डांटते नहीं
बचकर निकलते हैं और किसी तीसरे के साथ बैठकर
संस्कारों पर बात करते हैं
डरे हुए लोग अपने डर को दूसरों पर थोपते हुए चलते हैं
जिससे अपनी एक बडी बिरादरी बना सकें
और डरने को सार्वजनिक मान्यता दिला सकें।
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शराबी पिता
वे पिता जो हर शाम शराब पीकर घर आते हैं
कभी नहीं जान पाते
अपने बच्चों के स्कूल या दोस्तों की बातें
क्लास में आज क्या हुआ ? शाबासी मिली या डांट
कैसे खेलते हुए मुड़ गया पैर और लंगड़ाकर आना हुआ घर
उनकी बेटी कभी बता नहीं पाती उनको
एक शाम कैसे डरते-डरते घर लौटी वह
रास्ते भर लगा कोई पीछे है उसके
मुड़ कर देखने का भी न हुआ साहस
दीवार पर लगी बच्चों की बनाई नयी पेंटिग
आइसक्रीम खाने की छोटी सी खुशी
रात को गैस का चूल्हा साफ करने की बारी पर हुयी नोंक झोंक
कुछ भी पता नहीं चलता उन्हें
वे कभी नहीं जान पाते
दोपहर बाद चलने वाली हवाओं से किस कदर भर जाती है घर में धूल
देर शाम उनकी छत से कितना सुंदर दिखता है आसमान
क्यों लोगों को बच्चों का खेलना ही लगता है शोर
जब बच्चों को होती है घर आने में देर
उनकी मां कहां-कहां जाकर ढूंढती है उन्हें ?
वे नहीं जान पाते बच्चे उनसे ज्यादा चाचा या मामा का साथ पसंद करते हैं
उन्हें देख निचुड जाता है पत्नी के चेहरे का पानी
बच्चों को बताते हुए कि सब ठीक हो जाएगा जल्दी ही
खुश रहने का दिखावा करते हुए कितनी बेचारी लगती है वह
अचानक किसी दिन किसी के ध्यान दिलाने पर वे पाते हैं
उनके कंधे तक आने लगा है बेटा
बेटी को लोग परखने वाली नजरों से देखने लगे हैं
वे कहते हैं समय कितनी जल्दी गया
वे पत्नी की तरफ देखते हैं
वो अचानक उन्हें बूढ़ी लगने लगती है
वे शिकायत करते हैं ,उनके कहने सुनने में नहीं हैं बच्चे
घर में नहीं है उनकी कोई अहमियत
अपनी उम्र का अधिकांश हिस्सा समझाए जाते हुए ,डांट खाते हुए,
दुत्कारे जाते या दूसरों के सामने आने से कतराते हुए ये पिता
जब किसी दिन गुस्से से झल्ला कर कहते हैं
मेरी मर्जी मैं जैसे चाहे जियूं
मैंने क्या बिगाडा है किसी का ,
तो नहीं जान पाते इस बीच कितना कुछ खत्म हो गया होता है
इस बीच वे कितने कम हो गए होते हैं।
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रेखा चमोली
निकट ऋषिराम शिक्षण संस्थान
जोशियाडा , उत्तरकाशी 249193
उत्तराखण्ड